ShodhGyan
THE EFFECTIVENESS OF THE ‘INGAT PESAN IBU’ CAMPAIGN IN CHANGING LATE ADOLESCENT BEHAVIOR IN THE TOURISM AREAS OF BALI, BANDUNG, AND YOGYAKARTA

HISTORY OF THE TEMPLES OF RATANPUR

रतनपुर के मंदिरों का इतिहास

 

Dr. Jeevan Lal Jaiswal

 

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ABSTRACT

English: The famous historical and cultural site of Ratanpur is located 25 kilometers from Bilaspur district in Chhattisgarh. This sacred, mythological city of Ratanpur has an ancient and glorious history. It is the city of the Adishakti Mahamaya Devi, and evidence of its habitation exists throughout all four eras. It was known as Manipur in the Satyayuga, Hirapur in the Dwapar Yuga, Manikpur in the Treta Yuga, and currently as Ratanpur.

 

Hindi: छत्तीसगढ़ राज्य के बिलासपुर जिले से 25 किमी. की दूरी पर प्रसिद्ध ऐतिहासिक सांस्कृतिक स्थल रतनपुर अवस्थित है। इस पवित्र पौराणिक नगरी रतनपुर का प्राचीन एवं गौरवशाली इतिहास आदिशक्ति महामाया देवी की नगरी है जिसके चारों युगों में आबाद रहने का प्रमाण मिलता है। सतयुग में मणिपुर, द्वापर में हीरापुर, त्रेता में मणिकपुर, और वर्तमान में रतनुपर के नाम से जाना जाता है।

 

Received 28 July 2025

Accepted 29 August 2025

Published 29 September 2025

DOI 10.29121/Shodhgyan.v3.i2.2025.59  

Funding: This research received no specific grant from any funding agency in the public, commercial, or not-for-profit sectors.

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Keywords: Temples, Ratanpur, मंदिर, रतनपुर


1.   प्रस्तावना

छत्तीसगढ़ राज्य के बिलासपुर जिले से 25 किमी. की दूरी पर प्रसिद्ध ऐतिहासिक सांस्कृतिक स्थल रतनपुर अवस्थित है। इस पवित्र पौराणिक नगरी रतनपुर का प्राचीन एवं गौरवशाली इतिहास आदिशक्ति महामाया देवी की नगरी है जिसके चारों युगों में आबाद रहने का प्रमाण मिलता है। सतयुग में मणिपुर, द्वापर में हीरापुर, त्रेता में मणिकपुर, और वर्तमान में रतनुपर के नाम से जाना जाता है।

रतनपुर धार्मिक नगरी के नाम से जाना जाता है जहां अनेक देवी-देवताओं के प्राचीन मंदिर देखने को मिलते है लखनीदेवी का मंदिर पर्वत के काफी ऊंचाई पर स्थित है इस पहाड़ी को एकवीरा मंदिर या वराहगिरी भी कहते है यह मंदिर इसलिए भी खास हो जाता है क्योंकि यह रतनपुर के पहाड़ों में सबसे अधिक ऊंचाई पर निर्मित है। ‘‘लखनी देवी के इस ऐतिहासिक मंदिर को लक्ष्मीदेवी, स्तंभनी देवी और एकवीरा देवी के नाम से भी जाना जाता है। यह मंदिर बिलासपुर जिले को कोरबा जिले से जोड़ने वाली मुख्य मार्ग पर अवस्थित है। यह पहाड़ी वराह के आकार में होने के कारण वराहगिरी कहलाती है। तथा भैरवनाथ भगवान की उग्रता रोकने स्तंभन होने के कारण इन्हें स्तंभिनी देवी भी कहा जाता है।

घने जंगली पेड़ पौधों से घिरी वराहगिरी की दुर्गम चढ़ाई पर स्थित यह ऐतिहासिक मंदिर है। 259 सीढ़ी द्वारा ऊपर तक पहुंच मार्ग है। इस मंदिर की मूल रूप में गर्भगृह ही है गर्भगृह के भीतरी दीवार से लगी हुई लखनी देवी की बाई ओर श्री गणेश प्रतिमा स्थापित की गई है दायी ओर गौतम बुद्ध की प्रतिमा स्थापित किया गया है। गर्भगृह के एक दीवार के बाहर में स्कन्दमाता, कात्यायनी, कुष्माण्डा एवं दूसरे दीवार पर सिद्धिदात्री, महागौरी एवं कालरात्रि की प्रतिमा एवं दीवार के तीसरी ओर चन्द्रघंटा, ब्रम्हाचारिणी एवं शैलपुत्री की प्रतिमा स्थापित है, यह प्रतिमा ग्रेनाईट पत्थर से निर्मित है। परिक्रमा के दौरान यह मूर्तियां दिखाई पड़ती है। माना जाता है कि इस मंदिर का आकार पुराणों में वर्णित पुस्पक विमान की भांति दिखाई पड़ता है। यह मंदिर श्री यंत्र के नक्शे पर बना हुआ है साथ ही मंदिर के भीतर श्रीयंत्र है।

लखनीदेवी मंदिर से कुछ दूर आगे की पहाड़ी पर रामजानकी मंदिर अवस्थित है, जिसमें राम, लक्ष्मण, सीता एवं हनुमान जी की प्रतिमा विद्यमान है। मंदिर के सम्मुख हनुमान जी के एक विशाल प्रतिमा पहाड़ी के सर्वोच्च शिखर पर खड़े हुये मुद्रा पर विराजमान है। श्री हनुमान जी की पूर्ति निर्माण स्थल एक प्राचीन पूजा स्थल है, मान्यतानुसार श्री हनुमान संजीवनी लेने जाते समय चतुर्मुखी भरारी रतनपुर (मणिपुर) के दिब्य को आकाश में देखकर वहां अल्पविराम के रूप में वर्तमान लखनी पहाड़ी पर खड़े हुये थे इस पर्वत पर तप में लीन ऋषि ने उनसे रूककर विश्राम करने का आग्रह किया किन्तु उन्होने श्री लक्ष्मण के जीवन रक्षा का दायित्व बताते हुये द्रोणमुख पर्वत की ओर प्रस्थान किया व वापसी में आने का वचन दिया वे वापसी में दूसरे मार्ग से श्रीलंका की ओर प्रस्थान किये, किन्तु तपस्वी को शीघ्र उस पर्वत में प्र्रकट होने का स्वप्न आया। कुछ दिनो बाद वहां उनकी स्वयं की प्रतिमा चट्टान में प्रकट हुई। तपस्वी साधक आज भी वहीं बैठकर साधना करते है। 

ऐतिहासिक लखनीदेवी मंदिर का निर्माण रतनपुर के कल्चुरी शासक रत्नदेव तृतीय के प्रधानमंत्री गंगाधर राव ने 12वीं सदी में कराया था। प्राचीन मान्यतानुसार कल्चुरी नरेश रत्नदेव तृतीय का राज्यारोहण 1178 में हुआ था इस वर्ष रतनपुर राज्य में अकाल एवं महामारी का प्रकोप था राजा का राजकोष पूरी तरह खाली हो चुका था। इस स्थिति को देखते हुए उसके प्रधानमंत्री गंगाधर राव ने रतनपुर में देवी लक्ष्मी की मंदिर बनवाने का निर्णय लिया और शीघ्र ही इसे पूर्ण कर लिया गया। इस तरह मंदिर निर्माण के पश्चात् रतनपुर राज्य पुनः सुख, शांति एवं समृद्धि की ओर आगे बढ़ा। लखनी देवी मंदिर, को मां लक्ष्मी स्वरूप उपासना की जाती है इस मंदिर के गर्भगृह में जिस देवी की प्रतिमा स्थापित की गई है उन्हें एकबीरा या स्तंभिनी देवी के नाम से जाना जाता है। मंदिर के गर्भगृह में एक शिलालेख उत्कीर्ण है। यहां प्रत्येक वर्ष नवरात्रि के अवसर पर उत्सव एवं कार्यक्रम होता है नवरात्रि के अवसर पर श्रद्धालुगण पहुंचते है एवं मंगलकामना हेतु दीप प्रज्जवलित करते है। रतनपुर से लगभग 3 किमी. की दूरी पर समर्पित प्राचीन एवं पवित्र हिन्दू मंदिरों में से एक है। यह ऐतिहासिक मंदिर सदियों से इस क्षेत्र में आध्यात्मिक परिदृश्य का अभिन्न हिस्सा रहा है। यह मंदिर वास्तुकला की उस पारम्परिक हिन्दू शैली को दर्शाती है जो सदियों पहले इस क्षेत्र में प्रचलित थी। मराठों के काल में कल्चुरियों की भांति सांस्कृतिक परम्परा विद्यमान रही। बिम्बाजी भोंसले धार्मिक प्रवृत्ति के उदार एवं दयावान शासक थे उन्होंने धर्म परायणता का परिचय देते हुए रतनपुर के एक पहाड़ी टीले में भव्य राम मंदिर का निर्माण करवाया जो रामटेकरी के नाम से प्रसिद्ध है। संभवतः यह नागपुर में रामटेक स्थित रेकड़ी के स्मृति स्वरूप का स्थानापन्न हो। बिम्बाजी भोंसले द्वारा विजयादशमी के पर्व पर स्वर्ण पत्र देने की प्रथा यहां आरंभ की गई।

चूंकि यह मंदिर ऊंचे पहाड़ो में अवस्थित है और लोगों के आस्था का प्रमुख केन्द्र है। इसमें गर्भगृह परसिर के भीतर विभिन्न देवी-देवताओं को समर्पित छोटे मंदिर बना हुआ है। एक अलग प्रार्थना कक्ष का भी निर्माण हुआ है। गर्भगृह के भीतर भगवान राम अपनी पत्नी सीता एवं भाई लक्ष्मण के साथ विराजमान है तथा उनकी बायीं ओर भरत एवं दायीं ओर शत्रुहन की प्रतिमा खड़े हुए मुद्रा में स्थापित है। गर्भगृह के बाहर प्रार्थना कक्ष में हनुमान जी की अलौकिक प्रतिमा विराजमान है यह प्रतिमा विलक्षण प्रतीत होता है हनुमान जी का चेहरा मानव स्वरूप है जिसकी काली मुंह तेज आकर्षक दिखाई दे रहा है सिर में चांदी का मुकुट है हाथ में गदा पकड़े हैं। गर्भगृह के प्रवेश द्वार पर बायी ओर गणेश जी की प्रतिमा है तथा दायी ओर हनुमान स्थापित है गर्भगृह के बाहर प्रार्थना कक्ष में पाषाण युक्त स्तम्भ है जहां बैठकर श्रद्धालुगण प्रार्थना करते है। इस मंदिर का ऐतिहासिकता के साथ पौराणिक महत्व भी है स्थानीय मान्यताओं के अनुसार भगवान राम अपनी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ इस स्थान पर समय बिताये थे। इस तरह इस मंदिर की प्रासंगिकता पौराणिक संदर्भ में जोड़ा जाता है। बिम्बा जी भोंसले की पत्नी आनंदी बाई ने रामटेकरी मंदिर में मूर्ति के सामने बिम्बाजी की हाथ जोड़ी हुई प्रतिमा का निर्माण कराया था यह प्रतिमा बिम्बाजी की राम के प्रति आस्था को प्रकट करता है।

रामटेकरी मंदिर के आसपास का क्षेत्र धार्मिक एवं सांस्कृतिक गतिविधियों का केन्द्र बन गया है। यहां रामनवमी एवं दशहरा पर्व के अवसर पर भारी संख्या में भीड़ इकट्ठा होता है रामटेकरी मंदिर में आने वाले पर्यटकों की संख्या में वृद्धि हुई है मंदिर ऊंचे पहाड़ी में अवस्थिति के कारण शांत वातावरण पर्यटक को आकर्षित करते है। छत्तीसगढ़ सरकार ने क्षेत्रीय पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए पहल की है जिसमें रामटेकरी का विकास भी शामिल है। बेहतर सड़कों एवं परिवहन सुविधाओं के साथ रामटेकरी मंदिर में पर्यटकों की संख्या में वृद्धि हुई है।

सती एक हिन्दू ऐतिहासिक प्रथा थी जिसमें एक विधवा अपने मृत पति की चिता पर बैठकर खुद को बलिदान कर देती थी। मराठा शासक बिम्बाजी भोंसले की तीन पत्नियां थी आनंदी बाई, रमा बाई एवं उमा बाई। 7 दिसम्बर 1787 को बिम्बाजी भोंसले की मृत्यु हो गई इस अवसर पर उनकी पत्नी उमा बाई सती हुई थी। इस घटना से इस अंचल में सती प्रथा के प्रचलन का पता चलता है। इसके अलावा रतनपुर में अनेक सती चैरा का प्रमाण मिला है। सती चैरा तात्कालीन समय में सती होने के घटनाओं के परिमाणस्वरूप स्मृति चिन्ह के रूप में निर्मित किये जाते थे यही सती चैरा रतनपुर में मिला है। रतनपुर में अवस्थित बुद्धेश्वर महादेव मंदिर रामटेकरी मार्ग पर निर्मित है। इस मंदिर का निर्माण कल्चुरी शासक पृथ्वीदेव द्वितीय ने कराया था यहां शिवलिंग स्थापित है स्थानीय लोगों के अनुसार इसे बूढ़ा महादेव मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। पर्यटन के लिए रामटेकरी जाने वाले पर्यटक बुद्धेश्वर महादेव मंदिर का दर्शन करते है।

 रतनपुर के करैहापारा में स्थित रत्नेश्वर महादेव मंदिर काफी प्रसिद्ध है। इस मंदिर का निर्माण कल्चुरी शासक रत्नदेव तृतीय ने 12वीं सदी में कराया था यह मंदिर प्रसिद्ध वेद रत्नेश्वर तालाब के किनारे अविस्थत है। इसके अतिरिक्त इस तालाब के किनारे कबीर आश्रम है यह प्राचीन आश्रम इस आश्रम है की स्थापना सुदर्शन साहेब ने की थी। विशेष अवसर पर श्रद्धालुगण श्री रत्नेश्वर महादेव मंदिर का दर्शन करने पहुंचते है श्रावण मास में इस मंदिर में लोगों का भीड़ इकट्ठा होता है।

मंदिरों की नगरी रतनपुर में प्रसिद्ध हनुमान मंदिर रामटेकरी मार्ग पर अवस्थित है। इस मंदिर का निर्माण कल्चुरी शासक पृथ्वीदेव द्वितीय ने 12वीं शताब्दी में कराया था। यह रतनपुर में सिद्ध दक्षिणमुखी हनुमान मंदिर के रूप में प्रसिद्ध है। इस मंदिर में विलक्षण प्रतिमा निर्मित है। हनुमान जी की प्रतिमा के कांधे पर श्रीराम एवं लक्ष्मण जी विराजमान है एवं उनके पैरों तले अहिरावण दबा हुआ है। इस तरह अन्य हनुमान मंदिरों से भिन्नता दिखाई पड़ता है। इस प्रकार रतनपुर के गिरजावन का हनुमान मंदिर विशेष है। यहां अवस्थित हनुमान जी बाल ब्रम्हचारी हैं लेकिन इस मंदिर में हनुमान जी की पूजा एक स्त्री के रूप में होती हैं और शयद पूरी दुनिया में मौजुद इकलौता मंदिर भी है जहां भगवान हनुमान की पूजा एक महिला के रूप में की जाती है। रतनपुर के गिरजाबंध में मौजुग इस मंदिर में देवी हनुमान की मूर्ति हैं। गिरजावन हनुमान मंदिर परिसर में मां अंजनी का मंदिर है जिसमें बाल हनुमान मां अंजनी के सामने खडे है। इसके अलावा परिसर में शनि मंदिर निर्मित है। मंदिर परिसर के किनारे एक तालाब है परिसर के बार छोटे-छोटे दुकानों से आने वाले श्रद्धालु पूाज सामग्री खरीदते है। वर्तमान में गिरजावन हनुमान मंदिर का पुननिर्माण कार्य संचालित है छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा रतनपुर को शक्तिपीठ परियोजना के तहत पुननिर्माण के पश्चात् गिरजावन हनुमान मंदिर में पर्यटकों की संख्या में वृद्धि होगी।

रतनपुर महामाया मंदिर के पीछे कुछ ही दुरी पर अवस्थित है यह प्राचीन बैरागवन तालाब के किनारे स्थित है। बैरागबन तालाब के इस मंदिर को नर्मदेश्वर महादेव का मंदिर के नाम से जाना जाता है। जबकि इसके दूसरी ओर निर्मित स्मारक बीस दुवारिया मंदिर के रूप में जाना जाता है। वस्तुतः बीस दुवारिया मंदिर का निर्माण कल्चुरी राजा राजसिंह के द्वारा किया गया था चूंकि यह राजा राजसिंह का भव्य स्मारक है। यह 20 द्वारों से युक्त होने के कारण इसे बीस दुवारिया नराम से जाना जाता है इस मंदिर की खास विशेषता यह है कि यह मूर्ति विहिन मंदिर है। रतनपुर में स्थित प्राचीन शिव मंदिर कृष्णार्जुनी तालाब के किनारे निर्मित है। यह भगवान शिव को समर्पित मंदिर है। इसे सवेश्वर मंदिर भी कहा जाता है। क्योंकि इस मंदिर में सूर्यदेवी की प्रतिमा स्थापित है। मंदिर के गर्भगृह में ज्यामितीय आधार पर शिवलिंग निर्मित है तथा प्रवेश द्वार पर प्राचीन शिलालेख उत्कीर्ण है।

प्राचीन नगरी रतनपुर में मराठा शासकों ने स्थापत्य कला पर विशेष ध्यान दिया था। मराठा शासक बिम्बाजी भोसले ने रामटेकरी में राममंदिर का निर्माण कर छत्तीसगढ़ में राममयी सांस्कृतिक उत्थान को आगे बढ़ाया उसी प्रकार उसकी पत्नी ने अपने भतीजे खाण्डोजी की स्मृति में श्री खाण्डोवा मंदिर का निर्माण कराया था खाण्डोवा मंदिर प्राचीन दुलहरा तालाब के किनारे अवस्थित है। खाण्डोवा मंदिर के गर्भगृह में एक पाषाढ़ में निर्मित आकृति जिसमें घोड़े पर बैठे हुये खाण्डो जी दैत्य को संहार करते हुये दृश्य प्रदर्शित है। इस मंदिर के गुम्बद को 2017 में शिन्दे परिवार द्वारा जीर्णोधार कराया गया था।

ऐतिहासिक नगरी रतनपुर में अवस्थित गज किला कल्चुरी शासक पृथ्वीदेव द्वितीय द्वारा 12 वीं सदी में निर्माण किया गया था इसे रतनपुर किला के नाम से भी जाना जाता हैं। इसी गज किला के अंदर मराठा शासक बिम्बाजी की पत्नी आनंदीबाई ने लक्ष्मीनारायण मंदिर का निर्माण कराया था। इस मंदिर के गर्भगृह में सफेद ग्रेनाईट पत्थर से निर्मित मूर्ति स्थापित है मंदिर सोपानी चबुतरे पर बना हुआ है, मंदिर के बाहरी दीवारों में विभिन्न पशु पक्षी एवं फूलो से निर्मित आकृतियां बनी हुई है। इसी परिसर में भगवान जगन्नाथ मंदिर की स्थापना किया गया हैं इस मंदिर में भगवान जगन्नाथ, सुभद्रा एवं बलभद्र की प्रतिमा विद्यमान हैं गर्भगृह के ठीक बाहर देवी अन्नपूर्णा की प्रतिमा स्थापित हैं ऐसा माना जाता है कि देवी अन्नपूर्णा की पूजा-अर्चना करने से भगवान जगन्नाथ स्वामी प्रसन्न होते हैं। मंदिर परिसर में अन्नपूर्णा देवी के ठीक पीछे गरूण की प्रतिमा हैं एवं उसके नीचे मराठा शासक कल्याण साय की प्रतिमा स्थापित है गरूण एवं राजा कल्याण साय की प्रतिमा काले ग्रेनाइट पत्थर से बना हुआ हैं। इस मंदिर परिसर के दीवारों में सत्यनारायण, एकादशी, द्वादशी, राधाकृष्ण, दुर्गा, काली की प्रतिमा विद्यमान हैं। गज किला में स्थापित जगन्नाथ मंदिर के पुजारी पंडित पप्पू उपाध्याय जी ने बताया कि भगवान जगन्नाथ मंदिर में पुरी के मंदिर की भांति महाप्रसाद का भोग चढ़ाया जाता है और प्रत्येक वर्ष रथयात्रा के अवसर पर उत्सव का आयोजन होता हैं दूर-दूर से लोग यहाँ भगवान जगन्नाथ का दर्शन के लिए पहुँचते हैं। इस मंदिर का निर्माण कल्चुरी नरेश कल्याणसाय ने कराया था रतनपुर के इस प्राचीन मंदिर का निर्माण उड़िसा के पुरी में स्थित भगवान जगन्नाथ मंदिर के तर्ज पर किया गया था। यह मंदिर कल्चुरी कालीन वास्तुकला का बेहतर नमूना हैं।

बिलासपुर जिले के रतनपुर में आदिशक्ति मां महामाया का मंदिर देवी दुर्गा को समर्पित एक मंदिर है। यह बिलासपुर जिले से लगभग 25 किमी. की दूरी पर अवस्थित है। यह मंदिर संपूर्ण देश में विस्तृत 52 शक्तिपीठों मे ंसे एक है कल्चुरी राजवंश की कुलदेवी है आदिशक्ति महामाया को कोसलेश्वरी के रूप में भी जाना जाता है। प्राचीनकालीन महामाया मंदिर का निर्माण कल्चुरी शासक रत्नदेव प्रथम के द्वारा 11वीं शताब्दी में कराया गया था। एक बार राजा रत्नदेव प्रथम शिकार करने  मणिपुर आये थे उन्होंने एक वृटवृक्ष के नीचे रात्रि विश्राम किया था जब अचानक अर्द्धरात्रि में उनकी आंखे खुली तब देखा कि वहां एक अलौकिक प्रकाश उत्पन्न हुआ सामने देखा तो महामाया देवी थी इतने में राजा अपना चेतना खो बैठे। सुबह उठते ही राजा रत्नदेव प्रथम तुम्माण लौटे और रतनपुर को राजधानी बनाने का निर्णय लिया और 1050 ई. में रतनपुर में महामाया देवी का भव्य मंदिर निर्माण कराया। मान्यतानुसार रतनपुर में रानी सती का दाहिना स्कंद गिरा था स्वयं भगवान शिव ने कौमारी शक्ति पीठ का दर्जा दिया था यह मंदिर प्राचीनकाल में तंत्र-मंत्र साधना का प्रमुख केन्द्र था। वस्तुतः देवी के मंदिर में महाकाली, महा सरस्वती, महालक्ष्मी स्वरूप देवी की प्रतिमा विराजमान है मंदिर परिसर के भीतर भगवान शिव एवं हनुमान जी का मंदिर स्थापित है। इस मंदिर का जिर्णोद्धार संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग द्वारा कराया गया है।

मराठा शासन काल में शासक बिम्बाजी भोंसले ने कल्चुरी सांसकृतिक परम्परा को सुचारू रूप से संचालन किया। उन्होंने रतनपुर के महामाया मंदिर के प्रमुख पुजारी पंडित पंचकौड़ को सन् 1758 ई. में वार्षिक अनुदान देने की घोषणा की थी इस प्रकार बिम्बाजी द्वारा किया गया कार्य महामाया मंदिर के प्रति उदारता एवं हिन्दू धर्म के प्रति आस्था को प्रकट करता है। बिम्बाजी भोंसले ने महामाया मंदिर में कल्चुरी परम्परा को बनाये रखा था। महामाया मंदिर का निर्माण मंदिर वास्तुकला के नागर शैली के आधार पर बना है। नागर शैली में निर्मित मंदिरों की विशेषता है कि मंदिर का आधार से शिखर तक चतुष्कोणीय होता है यह ऊंचा शिखर युक्त होता है। शिखर के उपर कलश बना होता है इसके अलावा मंदिर का गर्भगृह एवं मण्डल निर्मित होता है। महामाया मंदिर में उपर्युक्त विशेषताओं की प्रधानता है इस मंदिर के पास एक विशाल सरोवर का निर्माण हुआ है। चूंकि रतनपुर के महामाया मंदिर का परिसर विशाल है यहां नवरात्रि के अवसर पर विशाल शारदीय नवरात्रि का आयोजन होता है। इस अवसर पर हजारों श्रद्धालुगण अपनी मनोकामना पूरा करने के लिए ज्योति कलश प्रज्जवलित करते है।

आदिशक्ति महामाया देवी मंदिर का प्रबंधन ट्रस्ट द्वारा किया जाता है यह सिद्ध शक्ति पीठ श्री महामाया देवी मंदिर ट्रस्ट द्वारा शासित है जो कि एक गैर लाभकारी संगठन है इस ट्रस्ट के द्वारा विभिन्न सामाजिक गतिविधियों एवं मानव हित से संबंधित कार्य किये जाते है। छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा एक हजार किलोमीटर लंबी शक्तिपीठ परियोजना की घोषणा की है छत्तीसगढ़ में पांच प्रमुख स्थानों को चिन्हांकित कर शक्तिपीठ का रूप दिया गया है जिसमें रतनपुर शामिल है इसके अलावा अन्य चार स्थल चंद्रपुर में चंद्रहासिनी, डोंगरगढ़ में बम्बेलेश्वरी, दंतेवाड़ा में दंतेश्वरी एवं अम्बिकापुर में स्थल चंद्रपुर में चंद्रहासिनी, डोंगरगढ़ में बम्बलेश्वरी, दंतेवाड़ा में दंतेश्वरी एवं अम्बिकापुर में महामाया देवी है। रतनपुर में महामाया मंदिर को शक्तिपीठ के रूप में नवनिर्माण करने पर पर्यटन के क्षेत्र में विस्तार की संभावना है। इससे आसपास के क्षेत्रों में धार्मिक पर्यटन का विकास होगा और आर्थिक गतिविधि में वृद्धि होगी।

कंठीदेवल भगवान शिव को समर्पित मंदिर है यह रतनपुर के महामाया मंदिर परिसर में स्थित है। इस मंदिर का निर्माण 15वीं शताब्दी में हुआ था इसके चार प्रवेश द्वार हैं मंदिर के दीवारों पर अनेक देवी देवताओं की मूर्तियों स्थापित किया गया है। भारतीय पुरातत्व विभाग के द्वारा कंठीदेवल मंदिर को जीर्णोद्धार कर राष्ट्रीय धरोहर की सूची में शामिल किया गया है।

यद्यपि इस मंदिर का स्तूप आकार में अष्टकोणीय है यह लाल पत्थर से बना हुआ है हिन्दू एवं मुगल वास्तुकला का अनोखा संगम इस मंदिर में दिखाई पड़ता है। इसके दीवारों पर उत्कीर्ण मूर्तियां बेहद सम्मोहन युक्त है बच्चे को स्तनपान कराती महिला कल्चुरी शासकों की प्रतिमा एवं लिंगोदभव शिव की प्रतिमा इस मंदिर के दीवारों पर उत्कीर्ण हैं। इस मंदिर के गर्भगृह में काले रंग का शिवलिंग स्थापित है। अनेक पर्व त्यौहारों के अवसर पर श्रद्धालुओं की भीड़ लगी होती है महाशिवरात्रि में दूर-दूर से लोग कंठीदेवल महादेव मंदिर के दर्शन के लिए पहुंचते है। यह प्राचीन मंदिर कल्चुरी शासन काल के स्थापत्य का प्रतीक है। मंदिर परिसर में सरोवर निर्मित है।

 

संदर्भ

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