An
Analytical Study of the Major Causes of Anxiety and Stress among Teachers
Working in Higher Secondary Schools उच्चतर माध्यमिक विद्यालयों में कार्यरत अध्यापकों में चिंता एवं तनाव के प्रमुख कारणों का विश्लेषणात्मक अध्ययन Dharmendra Singh 1 1 Research scholar, Faculty of Education,
Teerthanker Mahaveer University, Moradabad, India 2 Principal, Faculty of Education, Teerthanker Mahaveer University, Moradabad, India
1. प्रस्तावना शिक्षा
समाज के विकास
की आधारशिला
हैं और शिक्षक
इस प्रक्रिया
के प्रमुख
स्तंभ होते
हैं। किंतु
आधुनिक समय
में शिक्षकों
पर बढ़ते कार्यभार, प्रशासनिक
दबाव,
विद्यार्थियों
के व्यवहारिक
परिवर्तन, एवं
पारिवारिक
उत्तरदायित्वों
के कारण उनके
जीवन में तनाव
एवं
चिंताग्रस्तता
की समस्या
व्यापक रूप से
देखने को मिल
रही हैं। यह
तनाव न केवल
उनके
व्यक्तिगत
जीवन को
प्रभावित करता
हैं, बल्कि
उनकी
कार्य-संतुष्टि
शिक्षण
गुणवत्ता, एवं
मानसिक
स्वास्थ्य पर
भी नकारात्मक
प्रभाव डालता
हैं। इस शोध
का उद्देश्य
हैं— उच्चतर
माध्यमिक
विद्यालयों
के अध्यापकों
में कार्य
संबंधी तनाव
एवं चिंता के
प्रमुख
कारणों की
पहचान करना
हैं। वर्तमान
युग में
शिक्षा
क्षेत्र
तीव्र
परिवर्तन के
दौर से गुजर
रहा है,
जहाँ
अध्यापकों की
भूमिका केवल
ज्ञान प्रदान
करने तक सीमित
नहीं रह गई है, बल्कि
विद्यार्थियों
के सर्वांगीण
विकास,
नैतिक
मूल्यों के
संवर्धन तथा
सामाजिक उत्तरदायित्वों
के निर्वहन तक
विस्तृत हो गई
है। ऐसे
परिवर्तित
शैक्षिक
परिदृश्य में
उच्चतर
माध्यमिक
विद्यालयों
के अध्यापक
अनेक प्रकार
के कार्य
संबंधी
दबावों का
सामना कर रहे
हैं। बढ़ता
कार्यभार, प्रशासनिक
अपेक्षाएँ, विद्यार्थियों
का
अनुशासनहीन
व्यवहार, संसाधनों
की कमी,
तथा
प्रतिस्पर्धात्मक
वातावरण
अध्यापकों में
चिंता और तनाव
के प्रमुख
कारण बन गए
हैं। कार्य
संबंधी तनाव
और चिंता न
केवल
अध्यापकों के
मानसिक एवं
शारीरिक
स्वास्थ्य को
प्रभावित
करती हैं, बल्कि
उनके शिक्षण
कार्य की
गुणवत्ता, कार्य-संतुष्टि
और
विद्यार्थियों
के साथ उनके
व्यवहार पर भी
प्रतिकूल
प्रभाव डालती
हैं । जब कोई
शिक्षक
तनावग्रस्त
होता हैं । तो
उसकी
सृजनात्मकता, निर्णय
क्षमता तथा
प्रेरणा स्तर
में कमी आ सकती
है। जिससे
संपूर्ण
शिक्षण-प्रक्रिया
प्रभावित
होती हैं ।
इसलिए यह
आवश्यक है कि
शिक्षकों में
कार्य-संबंधी
तनाव के
कारणों की
पहचान की जाए।
इस अध्ययन का
उद्देश्य
उच्चतर
माध्यमिक
विद्यालयों
के अध्यापकों
में
कार्य-संबंधी
चिंता एवं
तनाव के
विभिन्न
कारणों का
विश्लेषण करना
हैं। जिससे
अध्यापकों के
कार्य
प्रदर्शन, संतुष्टि
और मानसिक
स्वास्थ्य
में सकारात्मक
सुधार लाया जा
सके। 2. चिंता चिंता एक
जटिल मानसिक
अवस्था है
जिसमें व्यक्ति
निरंतर
असुरक्षा, भय
अथवा असफलता
की आशंका का
अनुभव करता
है। यह अवस्था
व्यक्ति के
मानसिक एवं
शारीरिक दोनों
आयामों को
प्रभावित
करती है। जब
व्यक्ति किसी
संभावित संकट, कठिन
परिस्थिति या
अनिश्चित
परिणाम की
कल्पना करता
है, तब
उसके भीतर
अत्यधिक
विचार-प्रक्रिया
प्रारंभ हो
जाती है, जिसके
परिणामस्वरूप
चिंता
उत्पन्न होती
है। मानसिक
स्तर पर यह
अवस्था
बेचैनी,
घबराहट, नकारात्मक
विचार,
एकाग्रता
में कमी तथा
निर्णय-क्षमता
में बाधा के
रूप में प्रकट
होती है, जबकि
शारीरिक स्तर
पर हृदयगति
में वृद्धि, पसीना
आना, सिरदर्द
तथा
मांसपेशियों
में तनाव जैसे
लक्षण दिखाई
देते हैं।
चिंता एक
सामान्य भावनात्मक
प्रतिक्रिया
है, जो
व्यक्ति को
परिस्थितियों
के प्रति
सतर्क एवं सजग
रहने में
सहायक होती है, परंतु
जब यह
दीर्घकालिक
अथवा अत्यधिक
रूप धारण कर
लेती हैं, तब
यह व्यक्ति के
कार्यकुशलता, व्यवहारिक
संतुलन एवं
सामाजिक
संबंधों पर प्रतिकूल
प्रभाव डालती
हैं । "चिंता
एक ऐसी अप्रिय
भावनात्मक
अवस्था हैं, जो
किसी अनजाने
या अवचेतन भय
के कारण
उत्पन्न होती
है।" सिगमंड
फ्रायड शिक्षकों
के संदर्भ में, चिंता
के प्रमुख
कारणों में
विद्यार्थियों
के परिणामों
का दबाव, प्रशासनिक
कार्यभार, अभिभावकों
की अपेक्षाएँ, समय
की कमी और
कार्य-जीवन
संतुलन का
अभाव शामिल
हैं। लगातार
चिंता की
स्थिति
अध्यापकों की कार्यकुशलता, मानसिक
स्थिरता और
आत्म-संतोष को
प्रभावित करती
है। चिंता एक
ऐसी अवस्था है
जो व्यक्ति की
सोचने-समझने
और कार्य करने
की क्षमता को
बाधित करती है।
अतः चिंता को
पहचानना और
उसे
नियंत्रित करने
के लिए मानसिक
संतुलन,
सकारात्मक
सोच और
जीवनशैली में
सुधार आवश्यक
है। 3. तनाव तनाव एक
ऐसी
मनोवैज्ञानिक
एवं शारीरिक
अवस्था है जो
तब उत्पन्न
होती है जब
व्यक्ति पर बाहरी
या आंतरिक
माँगें उसकी
उपलब्ध
क्षमताओं एवं
संसाधनों से
अधिक दबाव
उत्पन्न करती
हैं। यह
अवस्था
व्यक्ति के
मानसिक
संतुलन,
भावनात्मक
स्थिरता और
कार्यकुशलता
को प्रभावित
करती है। तनाव
की उत्पत्ति
सामान्यतः तब
होती है जब
व्यक्ति किसी
चुनौतीपूर्ण
परिस्थिति, अपेक्षाओं
या दायित्वों
को पूरा करने
में कठिनाई
अनुभव करता
है। मानसिक
स्तर पर तनाव
के परिणामस्वरूप
व्यक्ति में
चिड़चिड़ापन, एकाग्रता
की कमी,
नकारात्मक
सोच और निर्णय
लेने की क्षमता
में कमी देखी
जाती है, जबकि
शारीरिक स्तर
पर थकान, सिरदर्द, रक्तचाप
में वृद्धि, हृदयगति
में
असामान्यता
एवं नींद
संबंधी विकार
जैसे लक्षण
प्रकट होते
हैं।
अल्पकालिक तनाव
व्यक्ति को
प्रेरित एवं
कार्यशील
बनाए रखने में
सहायक हो सकता
है, किंतु
जब यह
दीर्घकालिक
अथवा अत्यधिक
हो जाता है, तो
यह व्यक्ति के
मानसिक
स्वास्थ्य, कार्यक्षमता
तथा सामाजिक
संबंधों पर
प्रतिकूल
प्रभाव डालता
हैं। “तनाव
वह मानसिक
स्थिति हैं, जो
किसी व्यक्ति
की शारीरिक या
मनोवैज्ञानिक
मांगों और उन
मांगों को
पूरा करने की
उसकी क्षमता
के बीच
असंतुलन की
स्थिति से
उत्पन्न होती
हैं ।” कोलमैन शिक्षकों
के संदर्भ में
तनाव: उच्चतर
माध्यमिक
विद्यालयों
में कार्यरत अध्यापकों
में तनाव के
प्रमुख
कारणों में
अत्यधिक
कार्यभार, छात्रों
के परिणामों
का दबाव, प्रशासनिक
और
गैर-शैक्षणिक
कार्यों की
अधिकता,
अभिभावकों
एवं प्रबंधन
की अपेक्षाएँ, समय
की कमी तथा
व्यक्तिगत और
व्यावसायिक
जीवन के बीच
असंतुलन
शामिल हैं।
लगातार तनाव
की स्थिति
अध्यापकों की
कार्यक्षमता, रचनात्मकता
और मानसिक
स्वास्थ्य पर
नकारात्मक
प्रभाव डालती
है, जिससे
न केवल उनका
व्यक्तिगत
जीवन
प्रभावित होता
है, बल्कि
शिक्षा की
गुणवत्ता भी
कम हो सकती
है। तनाव जीवन
का स्वाभाविक
हिस्सा है, परंतु
इसका प्रभाव
व्यक्ति की
सोच, व्यवहार
और स्वास्थ्य
पर गहरा पड़ता
है। इसलिए
तनाव को
पहचानना, उसे
नियंत्रित
करना और
सकारात्मक
दृष्टिकोण
बनाए रखना
आवश्यक है, ताकि
व्यक्ति
स्वस्थ,
संतुलित और
उत्पादक जीवन
जी सके। 4. अध्ययन का उद्देश्य 1) उच्चतर
माध्यमिक
विद्यालयों
के अध्यापकों में
कार्य-संबंधी
चिंता एवं
तनाव के
प्रमुख कारणों
की पहचान
करना। 2) शिक्षकों
में तनाव के
व्यक्तिगत, व्यावसायिक
और सामाजिक
कारकों का
विश्लेषण करना। 5. शोध विधि इस अध्ययन
में गुणात्मक
शोध विधि का
उपयोग किया
गया है,
जिसका
उद्देश्य
उच्चतर
माध्यमिक
विद्यालयों
में कार्यरत
अध्यापकों
में चिंता एवं
तनाव के
प्रमुख
कारणों की
पहचान करना और
उनका विश्लेषण
करना हैं। 6. अध्यापकों में चिंता एवं तनाव के कारण अध्यापकों
में भी चिंता
और तनाव
उत्पन्न होते
हैं। यह तनाव
कई कारणों से
उत्पन्न होता
हैं, जैसे
कि कार्य की
मांग,
व्यक्तिगत
क्षमताओं, पारिवारिक
जिम्मेदारियाँ
और सामाजिक
अपेक्षाएँ।
जब ये सभी
कारक आपस में
संतुलित नहीं
रहते,
तो इसका
प्रभाव
व्यक्ति के
मानसिक और
शारीरिक
स्वास्थ्य
दोनों पर
पड़ता हैं।
इसके परिणामस्वरूप
व्यक्ति में
बेचैनी,
थकान,
हृदय गति में
असामान्यता
और मानसिक
दबाव जैसी
समस्याएँ
उत्पन्न हो
सकती हैं।
प्रत्येक कारण
का
विस्तारपूर्वक
विश्लेषण इस
अध्ययन में
प्रस्तुत
किया जा रहा
हैं: चित्र 1
अत्यधिक
कार्यभार: आज
के समय में
शिक्षकों पर
केवल पढ़ाने
की ही जिम्मेदारी
नहीं होती, बल्कि
उन्हें अनेक
अतिरिक्त
कार्य भी करने
पड़ते हैं।
इनमें
परीक्षा की
उत्तर
पुस्तिकाओं
का मूल्यांकन, प्रशासनिक
रिपोर्ट
तैयार करना, ऑनलाइन
डेटा एंट्री
करना,
और स्कूल की
अन्य
व्यवस्थाओं
में भाग लेना
शामिल है।
इसके
अतिरिक्त, कई
बार उन्हें
जनगणना,
मतदान आदि
जैसे
गैर-शैक्षणिक
कार्यों में
भी लगाया जाता
है। इस प्रकार
के कार्यों की
अधिकता से
शिक्षक अपने
मुख्य कार्य –
शिक्षण – पर पूरा
ध्यान नहीं दे
पाते,
जिससे उनमें
मानसिक थकान
और तनाव
उत्पन्न होता
हैं। छात्रों
का
अनुशासनहीन
व्यवहार: कक्षा
में छात्रों
का अनुशासन
बनाए रखना आजकल
एक बड़ी
चुनौती बन
चुका है। कई
छात्र पढ़ाई में
रुचि नहीं
लेते,
मोबाइल फोन
का अनुचित
प्रयोग करते
हैं, या
शिक्षक के
निर्देशों को
गंभीरता से
नहीं लेते।
इसके अलावा, छात्रों
की अनियमित
उपस्थिति और
असहयोगी रवैया
भी शिक्षकों
को परेशान
करता है। ऐसे
व्यवहार के
कारण शिक्षक
स्वयं को
असहाय महसूस
करते हैं, जिससे
उनके मानसिक
संतुलन पर
नकारात्मक
प्रभाव पड़ता
हैं। अभिभावकों
और प्रशासन की
अपेक्षाएँ: आजकल
शिक्षकों से न
केवल अच्छी
पढ़ाई की उम्मीद
की जाती है, बल्कि
छात्रों के
संपूर्ण
व्यक्तित्व
विकास की
जिम्मेदारी
भी उन्हीं पर
डाल दी जाती
है। विद्यालय
प्रशासन और
अभिभावक
दोनों ही शिक्षकों
से सर्वोत्तम
परिणाम की
अपेक्षा करते
हैं। लगातार
रिपोर्टिंग, परीक्षा
परिणामों का
दबाव,
और प्रशासन
द्वारा सतत
मूल्यांकन
जैसी व्यवस्थाएँ
शिक्षकों पर
मानसिक दबाव
डालती हैं। इस
प्रकार की
अपेक्षाएँ जब
बिना उचित
संसाधन और
सहयोग के होती
हैं, तो
शिक्षक
तनावग्रस्त
हो जाते हैं। संसाधनों
की कमी: कई
विद्यालयों
में आवश्यक
शैक्षणिक
संसाधनों की
भारी कमी होती
हैं। उचित
पाठ्य
सामग्री, डिजिटल
उपकरण,
और मूलभूत
भौतिक
संसाधनों के
अभाव में
शिक्षक
प्रभावी ढंग
से शिक्षा
प्रदान नहीं
कर पाते।
तकनीकी
प्रशिक्षण की
कमी भी
शिक्षकों को
असमर्थ महसूस
कराती है, विशेषकर
जब उनसे
आधुनिक
शिक्षण
पद्धतियों को
अपनाने की
अपेक्षा की
जाती हैं। ऐसी
स्थितियों
में शिक्षक
मानसिक रूप से
थका हुआ और
तनावग्रस्त
महसूस करता
हैं। आर्थिक
असुरक्षा और
वेतन संबंधित
समस्याएँ: वेतन
संबंधी
असमानता और
असुरक्षा भी
शिक्षकों के
तनाव का एक
प्रमुख कारण
हैं। निजी
विद्यालयों
में शिक्षकों
को बहुत कम
वेतन मिलता हैं, जबकि
सरकारी
विद्यालयों
में समय पर
वेतन न मिलना
आम बात हैं।
इसके अलावा, नौकरी
की स्थिरता और
पदोन्नति की
स्पष्टता न होने
के कारण भी
शिक्षक
भविष्य को
लेकर चिंतित
रहते हैं।
आर्थिक
अस्थिरता
व्यक्ति के
मानसिक
स्वास्थ्य को
सबसे अधिक
प्रभावित
करती है, और शिक्षक
इससे अछूते
नहीं हैं। व्यक्तिगत
जीवन और कार्य
का संतुलन:
शिक्षकों को
विद्यालय का
कार्य घर पर
भी करना पड़ता
है – जैसे
कॉपियों की
जांच,
पाठ योजना
बनाना,
या डिजिटल
कक्षाओं की
तैयारी करना।
इसके कारण
उनके
व्यक्तिगत
जीवन में समय
की कमी हो
जाती है।
परिवार और
सामाजिक जीवन
की उपेक्षा
उन्हें
मानसिक रूप से
थका देती है।
जब कार्य और
जीवन का
संतुलन
बिगड़ता है, तो
व्यक्ति में
चिड़चिड़ापन, थकावट, और
तनाव जैसी
समस्याएं
उभरने लगती
हैं। 7. चिंता एवं तनाव के कारणों का विश्लेषण अध्यापकों
में
कार्य-संबंधी
कारणों से
उत्पन्न
चिंता और तनाव
मुख्य रूप से
उनके पेशेवर कर्तव्यों
और
जिम्मेदारियों
से जुड़ा होता
है। अत्यधिक
कार्यभार और
समय की कमी, जैसे
कि कई विषयों
और कक्षाओं की
जिम्मेदारी, अधूरे
कार्य और समय
सीमा की चिंता, अध्यापकों
में मानसिक
दबाव को
बढ़ाती है। इसके
अलावा,
कक्षाओं में
विद्यार्थियों
का
अनुशासनहीन व्यवहार
और सीखने की
क्षमता पर
नियंत्रण न होना
भी उनके तनाव
का एक प्रमुख
कारण है।
प्रशासनिक
दबाव,
जैसे
रिपोर्ट
तैयार करना, परीक्षा
और बैठकों में
भाग लेना, और
नियमों तथा
अपेक्षाओं की अस्पष्टता
भी अध्यापकों
के मानसिक
तनाव को बढ़ाती
है। इसके साथ
ही पेशेवर
मूल्यांकन और
सहकर्मियों
से तुलना, शिक्षण
संसाधनों का
अभाव,
और नई
नीतियों के
अनुसार खुद को
ढालने की आवश्यकता
भी चिंता को
और बढ़ाती है।
इसके अतिरिक्त, संविदा
पर नियुक्ति, नौकरी
की स्थिरता और
पदोन्नति में
असमानता भी
कार्य-संबंधी
चिंता के
महत्वपूर्ण
कारण माने
जाते हैं, जो
अध्यापकों
में मानसिक और
शारीरिक थकान, बेचैनी
और तनाव की
स्थिति
उत्पन्न करते
हैं। अध्यापक
किसी भी
राष्ट्र के
विकास में
नींव की ईंट
के समान होते
हैं, क्योंकि
वे नई पीढ़ी
को केवल
शिक्षित ही
नहीं करते, बल्कि
उनमें नैतिक
मूल्यों और
सामाजिक उत्तरदायित्व
की भावना भी
विकसित करते
हैं। किंतु
दुर्भाग्यवश, वर्तमान
परिदृश्य में
अध्यापक
स्वयं अनेक प्रकार
के मानसिक, सामाजिक
और आर्थिक
दबावों से जूझ
रहे हैं, जिससे
उनके मानसिक
स्वास्थ्य पर
प्रतिकूल प्रभाव
पड़ रहा है।
सबसे बड़ा
कारण हैं –
कार्यभार की
अधिकता,
जिसमें
शिक्षण कार्य
के अतिरिक्त
विभिन्न प्रशासनिक, तकनीकी
और
गैर-शैक्षणिक
कार्यों को भी
शामिल कर दिया
गया है। इससे
न केवल
शिक्षकों की
दक्षता प्रभावित
होती है, बल्कि
उन्हें
मानसिक थकान
और
आत्म-असंतोष
की स्थिति से
भी गुजरना
पड़ता हैं ।
दूसरा प्रमुख
कारण कक्षा
में अनुशासन
बनाए रखने में
कठिनाई हैं।
आज के डिजिटल
युग में
छात्रों का
ध्यान भटकना, पढ़ाई
में रुचि की
कमी, मोबाइल
का दुरुपयोग
तथा शिक्षक के
प्रति सम्मान
की कमी जैसी
प्रवृत्तियाँ
शिक्षकों को मानसिक
रूप से आहत
करती हैं।
इससे
शिक्षकों को यह
महसूस होने
लगता है कि
उनकी भूमिका
केवल औपचारिकता
भर रह गई है।
इसके साथ-साथ, अभिभावकों
और विद्यालय
प्रशासन की
बढ़ती अपेक्षाएँ
भी एक बड़ा
तनाव उत्पन्न
करती हैं। जब
सीमित
संसाधनों, कम
समय और कम
सहयोग के
बावजूद उनसे
उच्चतम परिणाम
की उम्मीद की
जाती है, तो यह
अपेक्षा बोझ
में
परिवर्तित हो
जाती है। कई
बार शिक्षक इस
दबाव के कारण
आत्म-मूल्यांकन
में
नकारात्मक
दृष्टिकोण
अपनाने लगते
हैं, जिससे
उनका
आत्मविश्वास
कमजोर होता
है। संसाधनों
की कमी,
जैसे
गुणवत्तापूर्ण
पाठ्य
सामग्री, आधुनिक
तकनीकी उपकरण, प्रशिक्षित
सहयोगी स्टाफ
और समय पर
तकनीकी प्रशिक्षण
का अभाव, शिक्षक को
असहाय बना
देता है। वह
चाहकर भी नवीनतम
शिक्षण
तकनीकों का
उपयोग नहीं कर
पाता,
जिससे उस पर
ही उंगलियाँ
उठने लगती
हैं। आर्थिक
असुरक्षा और
वेतन संबंधी
समस्याएं, विशेष
रूप से निजी
विद्यालयों
में, शिक्षकों
की सबसे बड़ी
चिंताओं में
से एक हैं। जब
एक शिक्षक
अपनी मूलभूत
आवश्यकताओं
को पूरा करने
के लिए संघर्ष
करता है, तो उसका
पूरा ध्यान
केवल जीविका
पर केंद्रित हो
जाता है, जिससे वह
शिक्षण के
प्रति
उत्साहित
नहीं रह पाता। अंत में, कार्य
और जीवन के
बीच असंतुलन
शिक्षकों को
अंदर से तोड़
देता है। जब
एक शिक्षक
स्कूल के बाद
भी घर पर
कॉपियों की
जांच,
पाठ योजना, ऑनलाइन
कक्षाओं की
तैयारी या
छात्रों और
अभिभावकों के
साथ संवाद में
व्यस्त रहता
है, तो
उसका
पारिवारिक
जीवन
प्रभावित
होता हैं । धीरे-धीरे
यह असंतुलन
उसे मानसिक, शारीरिक
और भावनात्मक
रूप से थका
देता हैं । 8. निष्कर्ष अध्यापकों
में चिंता और
तनाव बहु-कारक
और बहु-स्तरीय
समस्या है, जो
उनके पेशेवर
कर्तव्यों, व्यक्तिगत
जीवन,
मानसिक एवं
भावात्मक
स्थिति,
और सामाजिक
एवं
पर्यावरणीय
परिस्थितियों
से उत्पन्न
होती है।
कार्य-संबंधी
जिम्मेदारियों, समय
सीमा,
प्रशासनिक
दबाव और
संसाधनों की
कमी से उनका मानसिक
दबाव बढ़ता
है।
व्यक्तिगत और
पारिवारिक
कारण,
जैसे
स्वास्थ्य
समस्याएँ, घर
की
जिम्मेदारियाँ
और कार्य–जीवन
असंतुलन, चिंता को
और बढ़ाते
हैं। मानसिक
और भावात्मक कारक, जैसे
अत्यधिक
चिंता,
आत्म-आलोचना, भावनात्मक
अस्थिरता और
दूसरों की
समस्याओं को
अपने ऊपर लेना, अध्यापकों
में निरंतर
मानसिक थकान
और बेचैनी
उत्पन्न करते
हैं। इसके
अतिरिक्त, असुविधाजनक
कार्यस्थल, शोर, संसाधनों
की कमी और
सामाजिक
अपेक्षाएँ
तथा असंतुलित
संबंध तनाव को
और बढ़ाते
हैं। समग्र रूप
से देखा जाए
तो ये सभी
कारक आपस में
परस्पर जुड़े
हुए हैं और
अध्यापक के
मानसिक और
शारीरिक
स्वास्थ्य पर
दीर्घकालीन
प्रभाव डालते हैं, जिससे
उनकी पेशेवर
क्षमता,
जीवन की
गुणवत्ता और
व्यक्तिगत
संतुलन प्रभावित
होता है। CONFLICT OF INTERESTSNone. ACKNOWLEDGMENTSNone. REFERENCESChaudhary, Mohan.
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